श्रीराधापतये तुभ्यं व्रजाधीशाय ते नम: । नम: श्रीनन्दपुत्राय यशोदानन्दनाय च ।।
देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते । यदूत्तम जगन्नाथ पाहि मां पुरुषोत्तम ।।
वाणी सदा ते गुणवर्णने स्यात् कणौ कथायां समदोश्र्च कर्मणि ।
मन: सदा त्वच्चरणारविन्दयोर्दृशौ स्फुरद्धामविशेषदर्शने ।।- (गर्ग0 मथुरा0 5 । 9-12)
अक्रूर बोले- असंख्य ब्रह्माण्डों के अधीश्वर तथा गोलोक धाम के स्वामी परिपूर्णत भगवान श्रीकृष्णचन्द्र को नमस्कार है। प्रभो ! आप श्रीराधा के प्राणवल्लभ तथा व्रज के अधीश्वर हैं, आपको बारंबार नमस्कार है। श्रीनन्दनन्दन तथा माता यशोदा को आमोद प्रदान करने वाले श्रीहरि को नमस्कार है। देवकीपुत्र ! गोविन्द ! वासुदेव ! जगदीश्वर ! यदुकुलतिलक ! जगन्नाथ ! पुरुषोत्त्म ! आपको नमस्कार है। मेरी वाणी सदा आपके गुणों के वर्णन में लगी रहे। मेरे कान आपकी कथा सुनते रहें। मेरी भुजाएँ आपकी प्रसन्नता के लिये कर्म करने में तल्लीन रहें। मन सदा आपके चरणारविन्दों का चिन्तन करे तथा दोनों नेत्र आपके प्रकाशमान एवं भव्य धामविशेष के दर्शन में संलग्न हों
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